नतीजों को सलाम
दुनिया सिर्फ “नतीजों” को ही “सलाम” करती है, संघर्ष को नहीं” ये कहावत कारपोरेट जगत में बिल्कुल चरितार्थ होती है। आज की प्रतिस्पर्धा की दौड़ में कंपनी, अपने कर्मचारियों से इस कदर आशायें और उम्मीदें रखती है, जो युवा वर्ग के लिए तनाव पैदा कर रही है। मेरा अनुभव कहता है कि ज्यादातर कर्मचारी हमेशा अपनी क्षमता से अधिक इन कंपनी के लिए कार्य करते हैं और हमेशा अपनी कंपनी की शाख को मजबूत करने का जरूरी प्रयास भी करते हैं, पर तनाव की स्थिति तब पैदा होती है जब वो अपना तन, मन इन कंपनी की उत्पादकता बढाने के लिए झोंक देते हैं, फिर भी जरूरत से ज्यादा की होड़, प्रोफिट़ बढाने की लालसा, प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ में पागल हुई ये कंपनियां आपके दिए हुये वो पल, मेहनत, लगन से लगे रहने और आपके सारे प्रयत्न को नकारा करते हुए सिर्फ परिणाम को तोलती है। क्योंकि इन कंपनिओं को अपने कर्मचारियों के तन, मन और स्वास्थ्य की परवाह नहीं उनको सिर्फ कम समय में अपने कर्मचारियों से सिर्फ चमत्कार वाले प्रभाव की उम्मीद रहती है। जो उनकी विक्री बढाने से जुडी़ होती है। दोस्तों अनुभव कहता है कि आप चाहे इन कंपनी के लिये अपना दिल भी निकाल कर रख दोगे, तब भी ये आपकी भावनाओं को कोई खास स्थान नहीं देंगे। ज्याद़तर अधिकारी सिर्फ आपको परिणाम के आधार पर ही आंकते है, पर मेरा मानना है कि आज के समय में भी 100% कोशिश, हिम्मत, मेहनत, जोश और लगन से जब आप अपने कार्य को अंजाम देते हैं तो बेशक सफलता आपको थोडी़ देर से ही मिले पर मिलती जरूर है। पर ये अधिकारी नहीं देखते, उनको तुरंत परिणाम की चाह रहती है, जो खतरनाक साबित होती है, इसके दुष्परिणाम उनको दिख ही जाते हैं, और इंसानियत की हार तब होती है, जब ऐसे मेहनती और ईमानदार कर्मचारी से चमत्कारी परिणाम ना आने से उसको निकालने की कोशिशें करते हैं। दोस्तों ये ही आज का कारपोरेट कल्चर हो गया है, यहां सिर्फ अधिकारियों को उनकी चापलूसी वाले हां मिलाने वाले लोग ही भाते हैं, ईमानदार, मेहनती और लगन के साथ काम करने वाले लोगों का कोई स्थान नहीं रहा है। नतीजे ही उनके लिए सर्वोपरि है।
सुनील माहेश्वरी