नटवर नागर कहलाए
गीत
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रखकर वंशी निज अधरों पर
श्याम मंद-मंद मुस्काये।
सोचे,बजाऊँ धुन कौनसी ,
नील कंठ को हरषाये।
एक द्वंद छिड़ी है कान्हा के
मन-मस्तिष्क के बीच
मन-मुकुर झलकत है वेदना
रहूँ कैसे दोज़ख कीच।
इस मनोदशा में कैसे वह
अपनी तान मधुर सजाये।
फिर लगा बाँसुरी होठों से
नटवर ने राग ऐसा छेड़ा।
रोम-रोम हर्षित होकर ज्यूँ
करे नृत्य आँगन टेड़ा।
सुधबुध खोकर जनमानस
प्रेम में डुबकी लगाये।
ऐसे रास रचाते साँवरे
ओ’कहलाते चितचोर
मीठी तान गूँजे उपवन
नाचे साथी संग मोर
दिखाकर लीला अपनी जो
नटवर नागर कहलाये ।
#मनोरमा_जैन_पाखी
08/10/’20