नज़्म _मिट्टी और मार्बल का फर्क ।
एक #नज़्म ,,,
“#मिट्टी_और_मार्बल_का_फ़र्क !”
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कुछ जानिए, कुछ समझाइए ,
जिस्म मिट्टी का है , मार्बल मत बनाइए!
फ़र्क मिट्टी और मार्बल का,
कभी सोचा आपने ,,
वक्त के साथ साथ का बदलाव,
नज़र आया कभी आपको ,
शायद ,, नहीं आया!
कुछ जानिए, कुछ समझाइए ,
जिस्म मिट्टी का है , मार्बल मत बनाइए!
एक दौर गुज़रा ,
जब सभी मिट्टी के साथ ,
उठते बैठते थे ,
मिट्टी भी उनका साथ देती थी ,
दिल ,नर्म , ज़ुबां भी नर्म ,
अदब, इज़्ज़त , एहतराम,
अपने पराए में कोई फ़र्क नहीं था ,
मिट्टी जन्म देने की ताक़त रखती,
खेत, बाग, जंगल, सब ,
मिट्टी की मेहरबानी,,
नर्मी का खज़ाना लिए ,
सबका ख्याल करना ,
तभी तो मिट्टी को मां का दर्जा मिला ।
कुछ जानिए, कुछ समझाइए ,
जिस्म मिट्टी का है , मार्बल मत बनाइए!
न जाने कौन आया ,
पर्वतों पर क़हर बरसाया ,
दिमाग़ लगाया किसी ने और ,
पर्वत ने खुद को टुकड़ा टुकड़ा पाया ,,
ज़ुल्म ,अन्याय, इंसानों के साथ ,
होता था ,अब निशाना पर्वत हुआ ,
मिट्टी से लोहा निकाला, बड़ी मशीनें बनाई ,
बारूद निकाला ,और ढाया क़हर पर्वतों पर ,,
बम, धमाके, दहल गई धरती ,,
जालिमों के आगे क्या करती ,,,
पर्वत के टुकड़ों को मार्बल में बदल दिया ,
बेजान लोगों का धंधा चल पड़ा ,
घर घर मार्बल लग गया ,
मिट्टी का अस्तित्व गया ।
जन्मा घर घर गुरूर। मार्बल का सुरूर !
कुछ जानिए, कुछ समझाइए ,
जिस्म मिट्टी का है , मार्बल मत बनाइए!
सीखिए मिट्टी से , मार्बल से बचिए ,
जब दीवारें कच्ची थीं , मुहब्बत पक्की थी,
वक्त ने बहुत कुछ बदल दिया ,,
एहसास मर गए ,, अरमान खो गए ,
जी रहा इन्सान ,अपने ही घर में बेगाना सा,
इंतज़ार सांसों की विदाई का ,
भूल गया रिश्ते नाते , भूल गया हंसना,
फिकरों में कटता दिन , रात बेचैनी में ,
ताज़ी हवा बंद हुई , ए सी में गुम हुई ,
रस्म रिवाज खत्म हुआ ,
मिट्टी जैसा मार्बल ने कुछ न दिया ।
“नील” गुम हुई , देख देख तबाहियां,
कुछ जानिए, कुछ समझाइए ,
जिस्म मिट्टी का है , मार्बल मत बनाइए!
✍️ नील रूहानी ,,,22/08/23,,,
( नीलोफर खान )