नज़रंदाज़
वो हमारे लिए ज़माने को नज़रअंदाज़ करने लगे हैं,
कुछ न होते भी जैसे हम खुद पर नाज़ करने लगे हैं
जाने क्या बीती उनपर, वो सोच रहे हैं हमें नज़रअंदाज़ कर दें,
हम तो वसीयत करके बैठे हैं, उनके नाम अपनी आवाज़ कर दें।
—————शैंकी भाटिया
सितम्बर 15, 2016