नजर
✒️?जीवन की पाठशाला ??️
जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की जरुरी नहीं की हर टूटा/बिखरा हुआ इंसान हमेशा रोता-बिलखता या उदास ही मिले ,कई इंसान हमेशा उसी गर्मजोशी-आत्मीयता-और मुस्कराहट के साथ मिलते हैं गोया कुछ हुआ ही ना हो और कई इंसान सब कुछ होते हुए भी विपरीत ही मिलते हैं …सोच .. दृष्टिकोण ..नजरिया …,
जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की एक दिन ऐसे ही तनहा बैठे बैठे जब मैंने अपनी पीठ पर धंसे हुए खंजरों को निकालना प्र्रारम्भ किया तो यकीन मानिये ये उतने ही निकले जिन्हें मैंने गले से लगाया था और जो कुछ और ज्यादा अंदर तक घुसे हुए थे ये उन अपनों के थे जिन्होंने अपनी जुबान से -व्यवहार -आचरण से इतना छलनी कर दिया था की खून रिसना भी बंद हो गया था, वक़्त ..हालात…गर्दिश …यही दुनिया की रीत है …,
जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की जिस प्रेम में बाधा/तकलीफ/उत्तार चढ़ाव ना हों वो प्रेम कैसा और जो इन सबको सहन ही ना कर सके वो प्रेम करने वाला प्रेमी /साथी कैसा …,
आखिर में एक ही बात समझ आई की आँखों से आंसू सूखे तो कलम की स्याही बन गए और जीवन में कुछ ऐसे हादसे हुए जो मुझे लिखना सीखा गए…जीवन में कभी भी अपनी हर ख़ुशी -कामयाबी को साझा मत करो ना जाने किसकी नजर लग जाए !
बाक़ी कल , अपनी दुआओं में याद रखियेगा ?सावधान रहिये-सुरक्षित रहिये ,अपना और अपनों का ध्यान रखिये ,संकट अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क ? है जरुरी …!
?सुप्रभात?
स्वरचित एवं स्वमौलिक
“?विकास शर्मा’शिवाया ‘”?
जयपुर-राजस्थान