नजर नहीं आता
कुछ ही दरख़्त बचे हैं,
सब जड़ें खोद दी गई है,
मिटा न सके नामोनिशां,
कौन कितना धार्मिक है,
लड़ रहे हो किसके लिए,
इतने खाली इतने अकेले,
ये जो सतत बह रहा है ..
नजर नहीं आता, नज़र न..
~ Mahender Singh Khaletia ~
कुछ ही दरख़्त बचे हैं,
सब जड़ें खोद दी गई है,
मिटा न सके नामोनिशां,
कौन कितना धार्मिक है,
लड़ रहे हो किसके लिए,
इतने खाली इतने अकेले,
ये जो सतत बह रहा है ..
नजर नहीं आता, नज़र न..
~ Mahender Singh Khaletia ~