नजरिया
नज़रिया
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मुझे मुहब्बत नही कि नफरत नहीं
न ही कोई शिकायत है
किसी के नज़रिये से ।
मैं तो बस जी रहा था, उल्फत के फसानों में
तुम किस किनारे हो, तुम्हारा हाल क्या है
मैं इस किनारे बैठकर कैसे देखूं ?
मंजर तेरे ठिकाने का
ये तो अंजाम होना ही था
इस टूटे अफसाने का ।
एक खयाल चुपचाप बैठा है
उस पुराने काले पत्थर पर
अभी तक जो राह किनारे है पड़ा
वो पत्थर जो किसी वक्त ,
खिलखिलाते सपनो का सरताज था
कितने ही प्रेमी युगलों की चुहलबाज़ी
और झगड़ों का इकलौता राज था
धीरे धीरे वक्त बदला , सारे अंदाज बदल गए
एक पल में , देखते देखते सारे किस्से बिखर गये
रास्ते बदलते गए, युगल तितर बितर हो गये
ज़माने की नई रीत के नए पंथ पर बसर हो गये।
प्रेम, प्यार, स्नेह सब एक भुलावा रह गया
तब्दीलियां हुई , बहुत आगे चढ़ गये
विरासते, स्मारक कब लुप्त हुये
नए मुकाम बन गये।
उन धरोहरों में आज
5 स्टार होटलों की आहट
एक प्लास्टिक कार्ड ने
सारे व्यवहार बदल दिए
कहां गई ?
चिल्लर सिक्कों की खनखनाहट
खरखराते नोट विलुप्त हो गए
अशर्फी की शक्ल देखे कितने अरसे गुजर गए
प्लास्टिक के कार्ड ने सारा विश्व बदल दिया
ये कार्ड जीवन के व्यवहार में
हर स्तर पर छा गए
चिल्लर, नोट, अशर्फी, गिन्नी सब कुछ खा गए ।
बदलाव और प्रगति का स्वागत होना ही चाहिए
किंतु इस बदलाव में अपने संस्कार मत भूल जाइए
संतुलन आवश्यक है, अति महत्वपूर्ण है
असुंतलित तुला का तौल सदैव अपूर्ण है ।
रचयिता
शेखर देशमुख
J-1104, अंतरिक्ष गोल्फ व्यू -2
सेक्टर 78, नोएडा (उ प्र)