” नजरिया “
स्मृति के पेट की चमड़ी हल्की – हल्की फटती तो वो फटन उसको बड़ा दर्द देती पहली बार माँ बन रही थी कुछ पता था नही क्या करे समझ नही पा रही थी…सोचा मम्मी ( सास ) से बोलती हूँ , उसकी बात सुनते ही सास ने बोला ” बहुत कॉस्टली होती है ये क्रीम ” नारियल का तेल लगा लो और देखो मुझे दो – चार घंटे कोई डिस्टर्ब ना करे पटुआ ( गहनों की पुहाई करने वाला ) आ रहा है मेरी बसरे की मोतियों को पलक झपकते कब इधर से उधर कर देगा की पता ही नही चलेगा ” पता है ना कितनी कॉस्टली होती हैं ? ” स्मृति मन में सोचने लगी किसी के दर्द की कोई कीमत नही यहाँ मुझे इतना दर्द हो रहा है और वहाँ वो बसरे की मोतियों की माला पुहाई जा रही है…सबका अपना – अपना नजरिया है कीमत देखने का ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 29/07/2020 )