नगमे अपने गाया कर
नग़मे अपने गाया कर (गीत)
कभी कभी तो आया कर
कभी कभी तो जाया कर
कहती विपदा, रात गई
नग़मे अपने गाया कर।।
अपने में ही मस्त रहा
सपने में ही त्रस्त रहा
दाना पानी, घर दफ्तर
जीवनभर यूँ व्यस्त रहा।।
खुद को भी समझाया कर
नग़मे अपने गाया कर।।
कुछ पाना ,कुछ खोना क्या
समय समय को रोना क्या
रात कहे, तू सो जा री
तारों का फिर जगना क्या
जी को भी बहलाया कर
नग़मे अपने गाया कर।।
छोड़ उदासी आगे बढ़
अपने हाथों क़िस्मत गढ़
जैसे रवि लिखे कहानी
ढूंढे शशि अमर जवानी
सागर सा लहराया कर
नग़मे अपने गाया कर।।
सूर्यकांत