” नखरे तेरे अलहदा ” !!
गीत
छू गई है महक तेरी ,
और यह कमसिन अदा !!
हे लुभाती सादगी ये ,
और निखरा रूप है !
बादलों की ओट है रवि ,
गुनगुनी सी धूप है !
सरसराती पवन महकी ,
नखरे तेरे अलहदा !!
खिल उठा मौसम सुहाना ,
देख तेरा बांकपन !
झूम कर मिलने चले हैं ,
इठला कर धरा गगन !
भ्रमर भी उतरे रिझाने
रह न पाये वे जुदा !!
छू सके काँटें तुम्हें न ,
दम निकला जाये है !
चाह हर दिल में बसी है ,
छू न तुमको पाए है !
मनलुभावन तुम बड़े हो ,
हर नज़र तुम पर फिदा !!
स्वरचित / रचियता
बृज व्यास
फरीदाबाद