नकाब
लघुकहानी- नकाब
चेहरा व्यक्ति के आत्मा का प्रतिबिंब होता है।जो जैसा विचार रखता है उसका चेहरा वैसा ही बयान करता है।पर सच्चाई कभी-कभी इसके विपरीत होती है।
सेठ करमचंद और उनकी पत्नी अनीता दोनों समाज सेवक थे।समाज में उनका एक अलग रुतबा था।समाज के अहम मुद्दों पर दोनों दम्पत्ति आए दिन अपना पक्ष बड़ी मजबूती से रखते थे।उनका इकलौता बेटा रमेश था और बहू गीता बहुत ही नेक संस्कारों की औरत थी।गीता की पहली औलाद लड़की थी। इस बार जब गीता गर्भवती हुई तो उसकी सास अनीता उसे लेकर डाक्टर के पास भ्रूण की जांच कराने पहुँची। दोबारा से कन्या भ्रूण का पता चलते ही अनीता की भृकुटी तन गई उसने डाक्टर से और गीता से बच्चा गिराने को बोला।
यह सुनते ही गीता रोने लगी और पास खड़ी डाक्टर हैरान होते हुए बोली अरे! आप तो समाज सेविका हैं।आप ने तो लैंगिग समानता पर पिछले सप्ताह ही भाषण दिया था,जो अखब़ारों की सुर्खियाँ कई दिनों तक बनी रही।फिर आप कन्या भ्रूण हत्या का पाप क्यों लेना चाहती हैं? क्यों अजन्मी बच्ची को गर्भ में ही मार देना चाहती हैं?इस
पर अनीता ने गुस्से में बोला डाक्टर साहिबा आपसे जितना कहा जाए उतना करिए।मेरे घर में भी तो कोई वंश वृद्घि करने वाला होना चाहिए।हम जो बातें भाषण में कहते हैं उनका मेरे घर- परिवार से कोई लेना देना नहीं।
उनकी बातें सुनकर डाक्टर चकित थी और गीता के सास-ससुर के चेहरे के पीछे जो नकाब छिपा था उसे समझने की कोशिश कर रही थी।
मौलिक व स्वरचित
आभा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश