नए साल में….
86…
नए साल में….
*
स्वागत गीत लिखे चलो फिर से नूतन साल की
मन चाहे रंगों में हो फिर हाथी घोड़ा पालकी
*
बीते को मुड़ देखो भाई
लुटती गाढ़ी कहां कमाई
वे फिकर बिल्कुल ना पालें
समझे ना जो पीर पराई
समझौतों के सकरे पुल से, तिजौरी भरी दलाल की
*
सपने जो कलयुग में आते
लोभान की दुकान सजाते
डिस्काउंट में बेच रहे हैं
यहाँ सभी हर रिश्ते नाते हे
नाथ कितने जोर से बोलें जै कन्हैया लाल की
*
नदी किनारे था एक मरघट
धू धू जल रहती चिताएं
हर संताप समय के हाथों
पा जाती कपाल क्रियाएं
बिजली की शव दाह खुले , किल्लत लकड़ी टाल की
*
संवाद हीन है जग सारा
व्यर्थ का गूंजा करता नारा
अलगू जुम्मन न्याय न देते
तर जाए जो गरीब बिचारा
रिश्वत के ढेरों पानी ने गति बना दी क्या दाल की
*
ले दे कर गांव था सुधरा
बिखरा गए मजहब कचरा
हैं इंसानियत के घिसते पुर्जे
उस पर भी कानूनी पहरा
सोचो समझो नेता परखो समय चुनावी चाल की
*
सुशील यादव दुर्ग