नई जिंदगी की शुरुआत ( कहानी )
नई जिंदगी की शुरुआत ( कहानी )
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“क्या बात है माँ ! सिर्फ पैंतीस हजार रुपए ही तो मांग रही हूं ? कॉलेज की फीस देनी है। इतनी फीस भी क्या तुम नहीं दे सकतीं?” अनुपमा ने जब आपकी मां सावित्री से यह बात कही तो वह परेशान हो उठीं। उनसे कोई जवाब देते नहीं बन रहा था।
वास्तव में दुविधा ही कुछ ऐसी थी। इधर अनुपमा को ग्रेजुएशन के कोर्स के लिए कॉलेज में एडमिशन लेना था और उधर उसकी बड़ी बहन अवनी का रिश्ता पक्का हो गया था । जब अनुपमा की पढ़ाई की बात हुई थी और उसका ग्रेजुएशन में एडमिशन दिलाने की हामी सावित्री ने भरी थी ,तब परिस्थितियां कुछ और थीं। लेकिन अब बदल गई थीं। एकाएक अवनी की ससुराल वालों ने एक अच्छे होटल से शादी किए जाने की मांग कर दी । इसमें बजट गड़बड़ा गया । लगभग तीन गुना खर्चा बैठ रहा था। यही समझ में नहीं आ रहा था कि इतने पैसों का इंतजाम कहां से किया जाए ? कर्ज लेने का विचार था किंतु उसके लिए भी पापड़ बेलने पड़ेंगे । अब ऐसे में पैंतीस हजार रुपए का अतिरिक्त खर्च एक निम्न वर्गीय परिवार भला कैसे उठा सकता था ?
बाजार से कर्ज लेना मजबूरी थी । लिया भी जाएगा लेकिन उसमें भी समस्या यही है कि कर्ज कैसे चुकेगा और उसमें भी कितने साल लग जाएंगे ? ऐसी हालत में छोटी बेटी को पढ़ाने के काम में परिवार खर्च कैसे कर सकता है ? अभी तो कर्ज लेकर शादी करने की ही समस्या सिर पर आकर खड़ी हो गई है ।
आखिर दिल कड़ा करके सावित्री ने अनुपमा से कह भी दिया “हम तुम्हें आगे नहीं पढ़ा सकते । तुम्हारी बहन की शादी करनी है। अच्छे होटल से शादी की डिमांड आई है। अगर हम ने मना कर दिया तो रिश्ता टूट जाएगा और हम कहीं के मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे । अच्छा यही होगा कि तुम अपनी पढ़ाई पर जोर मत दो । बहन की शादी अच्छे ढंग से हो जाने दो ।”
सुनकर अनुपमा सोच में पड़ गई । क्या हम लड़कियों का भविष्य यही है कि वह पढ़ाई न करें और परिवार में अपनी बहनों की शादी के लिए रुपया खर्च करने के मार्ग में बाधक भी न बनें। आखिर तीन साल पहले अवनी के साथ भी तो यही हुआ था। उसने भी ग्रेजुएशन करना चाहा था मगर इसको भी यही बताया गया था कि सबसे बड़ी बहन की शादी सिर पर रखी है । पैसों का इंतजाम शादी के लिए करें या तुम्हें पढ़ाने में सारा पैसा खर्च कर दें ? अवनी भी बहुत छटपटाई थी , रोई और चीखी-चिल्लाई थी । लेकिन कुछ नहीं हुआ । परिवार में किसी ने उसकी एक न सुनी। वास्तविकता तो यह है कि पिताजी ने सामने आकर परिवार की आमदनी का कच्चा चिट्ठा सबके सामने खोल कर रख दिया था। घाटे में परिवार का खर्चा उठाया जा रहा था और अब सबसे बड़ी बेटी के हाथ पीले करने के काम में सिवाय बाजार से कर्ज लेने के अलावा और कोई चारा नहीं था ?
उस समय अनुपमा कितनी सहम गई थी ! सोच रही थी ,क्या मेरे साथ भी कल को यही तो नहीं होने वाला है ? …और आज वास्तविकता का भयावह चित्र खुद उसकी जिंदगी का एक हिस्सा बन चुका है ।
“किस सोच में पड़ी हो अनुपमा ? “- माँ सावित्री ने उसके कंधों को झकझोरा तो अनुपमा जैसे सोच से उबरी और वर्तमान में आ पाई ।
“मेरी मानो तो कहीं नौकरी कर लो । कुछ रुपए मिल जाएंगे। उनसे घर का खर्च भी चल जाएगा और तुम्हारी शादी के लिए भी थोड़ा रुपयों का इंतजाम होता रहेगा ।” -सुनकर अंदर ही अंदर घुटकर रह गई थी अनुपमा । लेकिन अगले दिन सुबह कपड़े बदल कर वह जल्दी ही निकल पड़ी । माँ ने पूछा “इतनी सुबह जल्दी-जल्दी कहां जा रही है बिटिया ? ”
“नौकरी ढूंढने । अब हमारी यही तो जिंदगी है । अपनी शादी के लिए रुपए इकट्ठा करने हैं।” अनुपमा का चेहरा गुमसुम था । माँ देखती रह गई और वह एक नई जिंदगी की शुरुआत के लिए निकल पड़ी ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451