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17 Jun 2024 · 1 min read

नई ज़िंदगी

दरख़्त-ए-जिगर में इक आशियाना रक्खा है,
यूं दिल में छुपा कर इक जमाना रक्खा है,
हर-सम्त सुकून ढूंढने में निकाल दी नई ज़िंदगी,
क्या आसमां क्या जमीं बस ठिकाना रक्खा है,

©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”

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