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10 Jan 2021 · 4 min read

नई खून , सोच से शून्य ।

दिनांक :- 09/01/2021
दिवस :- शनिवार
विधा :- कहानी
शीर्षक :- नई खून , सोच से शून्य

बात कोरोना काल के बाद दो हज़ार बीस नहीं वर्ष इक्कीस की शुरुआती माह की प्रथम सप्ताह के अंत द्वितीय सप्ताह की शुरुआती के दुसरी दिन शनिवार नौ जनवरी की है , जब हम रोशन सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कलकत्ता विश्वविद्यालय से द्वितीय वर्ष हिन्दी आनर्स की परीक्षा देने के बाद रामकृष्ण महाविद्यालय से ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के बी. एस .सी, बी.कॉम नहीं बी.ए प्रथम खंड हिन्दी आनर्स की परीक्षा देने बिहार आएं रहें , देव नारायण यादव महाविद्यालय में परीक्षा का केन्द्र पड़ा रहा , पहली तल्ला के कमरा संख्या बयालीस “अ” में हमारा सीट बीच कतारों की प्रथम बेंच पर ही रहा , हर बेंच पर चार – चार परीक्षार्थियों को बैठाया गया था इससे हमें पता ही नहीं चला हम परीक्षा देने आएं हैं या पढ़ने ….
और भी बातों से , परीक्षार्थियों फोन रखेंगे अपने जेब में पर बंद करके, इस तरह भी परीक्षा होती है , मानते हैं इस काल में फ़ोन रखना जरूरी है तो आप परीक्षकों परीक्षार्थियों की फोन उनके बैग बस्ता में रखने के लिए कहिए , आप जैसे परीक्षकों का भी सोच अच्छा है कहीं किसी का फोन चोरी न हो जाएं , आप मोबाइल बंद करवा कर रखने के लिए कहते परीक्षार्थियों को, वे अपने बंद भी रखते है , आप जैसे परीक्षकों कभी सोचे है ,आज एक अंक , दो नम्बर जैसी प्रश्न आते है जिसका वह उत्तर अपने मोबाइल इंटरनेट के माध्यम से आसानी से जान सकता है , वह कैसे भले परीक्षार्थी आपके डर से परीक्षा रूम में फोन न निकाले , न खोलें , लेकिन वह बाहर तो पांच – दस मिनटों के लिए तो जा ही सकता है न , बस वही कुछ प्रश्नों का जवाब अपने फ़ोन इंटरनेट से जान लेंगे , खैर कोई बात नहीं , अब आते है हम कहानी की शीर्षक पर “नई खून , सोच से शून्य” मतलब नई खून नव शिक्षक को कहा गया है यानि परीक्षक को , परीक्षक शायद प्राईवेट से परीक्षा लेने आया रहा इस बात का पता हमें उनके चेहरों से चल रहा था, द्वितीय पाली में हिन्दी आनर्स की द्वितीय पेपर की परीक्षा रहा जहां यानी डी.एन.वाई कॉलेज में
आर.के. कॉलेज व अमीर हसन सकुर अहमद कॉलेज के परीक्षार्थियों बी.ए , प्रथम वर्ष की परीक्षा देने आएं रहें , उस दिन एक सरकारी प्रोफेसर रहे , और दो नई खून ? जो आप समझ ही चूके होंगे मतलब प्राईवेट से परीक्षा लेने वाले परीक्षकों , दोनों परीक्षकों को नई खून इसलिए कहा गया है कि नव खून की एक अलग ही गर्मी होती है और उन दोनों परीक्षकों ने गर्मी का शानदार प्रदर्शन दिए , ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना और बात उसे छोड़िए , जब हिन्दी की ही परीक्षा रही तो प्रश्न हिन्दी साहित्य से ही रहता न और प्रश्न भी बहुत आसान आसान थे , वही विद्यापति , कबीर, घनानंद , तुलसीदास , सूरदास आदि से संबंधित , हम तो हर परीक्षा को त्योहार मानते और उसे मनाते भी है उस दिन भी हम अपनी साहित्य से लगाव भरी प्रेम को दर्शायें इन शब्दों में …..

” जब आएं भगवान राम , लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र ,
तब जनक राज्य मिथिला हुए और पवित्र ”

ये शब्द धनुष भंग प्रसंग वाली प्रश्न , भगवान श्रीराम, लक्ष्मण , गुरु विश्वामित्र और मिथिला भूमि के लिए वर्णित किए , दोनों परीक्षकों प्राईवेट से रहें दोनों एक ही तरह व्यवहार किए , एक पतला दुबला रहा दूसरे थोड़ा ठीक ठाक रहा , वैसे दोनों परीक्षकों ने नव खून की गर्मी की परिभाषा दिए , जो पतला दुबला से ठीक ठाक रहा , अब उन्हीं परीक्षकों के बारे में बताने जा रहे है , परीक्षा आरंभ के समय ही एक परीक्षार्थी ने गेस पेपर से लिखना प्रारम्भ कर दिया , पतला दुबला से ठीक ठाक रहा जो परीक्षक वह आकर उस परीक्षार्थी का उत्तर पत्र छीन लिया , वह परीक्षार्थी भी खूब शोर गुल किया अंत में उस परीक्षार्थी को प्रधानाचार्य के पास ले गया , फिर वही परीक्षक अधिकांश सभी परीक्षार्थियों को दो नम्बर वाले प्रश्न का उत्तर बताने लगे , अचानक मेरी नज़र उस परीक्षक के पास गया वह उत्तर बता रहा था , मैंने इस तरह अपनी आंखों से देखा कि वह परीक्षक सीधे मेरे पास आएं , और बोले आपको कौन सा बता दूँ , मैं दो नम्बर वाली प्रश्न का आठ कर लिया था , दो का उत्तर पता नहीं था , फिर भी हम उन परीक्षक को कहें मेरा सभी प्रश्नों का उत्तर हो गया है , और वह परीक्षक कहने लगा सभी को लेकर चलना पड़ता है जी । वे हमारे बगल वाले लड़का को बताने लगे , और हमसे पूछें कोई समस्या नहीं न , समस्या होते हुए भी हमने बहुत ही गंभीर से उत्तर दिए नहीं सर कोई समस्या नहीं , समस्या हमें भी नहीं थी पर समस्या इस लिए थी क्योंकि वही परीक्षक ने एक लड़का का उत्तर पत्र कुछ समयों के लिए ले लिए रहें , मेरा कहना है जब नकल ही करवाना है तो फिर दिखावा क्यों ? इन सभी कारणों के लिए ही हम इस कहानी की शीर्षक रखें है ..
नई खून , सोच से शून्य
अर्थात खून तो नई है पर सोच से शून्य है , क्योंकि एक का उत्तर पत्र ले लिए फिर आप उत्तर बताने भी लगे तो आपकी सोच से ही शून्य है , न जाने इस प्रकार कितने परिक्षाएं हुए , हो रहे और होते रहेंगे ।।

✍️ रोशन कुमार झा
रामकृष्ण महाविद्यालय मधुबनी
ग्राम :- झोंझी , मधुबनी , बिहार,
शनिवार , 09/01/2021 , कविता :- 18(70)

Language: Hindi
701 Views
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