नई उम्मीद
#दिनांक:- 26/8/2023
#शीर्षक:-नई उम्मीद
जिद मेरी इतनी बड़ी भी नहीं थी,
चाह थी तो बस तेरे साथ की,
बेशक लौटकर चले जाते तुम,
पर क्यूँ जबर्दस्ती छुड़ाया बन्धन ,
हाथो से हाथ का,
कितनी चिट्ठियाॅ तेरे नाम लिख छोड़ा है ,
पर तुमने क्यूँ बेदर्दी से मुख मोड़ा है?
हालात से समझौता करें कब तक
बता दे ?
एक झूठा ही सही तार तो भिजा दे,
झनझना उठेंगे दिल के तार,
महक जाऊॅगा मैं,
चमक जैसे चाँद सितारों की,
बेचैन राह तकती डाकिए की ,
कब आयेगा संदेश मेरे मीत का?
भोर की लाली से आशा जग जाती,
ढ़लती सांझ की लालिमा,
निराश कर जाती,
विभावरी काल रात्रि बन जाती,
फिर आदित्य की रोशनी नई उम्मीद जगाती।
रचना मौलिक, अप्रकाशित, स्वरचित और सर्वाधिकार सुरक्षित है।
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई