#ध्यानाकर्षण-
#ध्यानाकर्षण-
■ यही है कालचक्र।
【प्रणय प्रभात】
अति-प्राचीन काल में इसी पुण्य-धरा पर उपजने वाले असुर अपनी तपस्या से देवताओं को प्रसन्न करते थे। उन्हें प्रकट होने के लिए बाध्य करते थे और वरदान मांगते थे। देवगण अतीत की भूलों को विस्मृत कर वरदान दे दिया करते थे। बाद में अन्य सुरों की तरह स्वयं भी संकट में पड़ कर परमब्रह्म की शरण में जा कर क्रंदन व याचना करते थे।
विडम्बना की बात यह है कि सारे वेद-पुराण, उपनिषद सदियों से पढ़ते चले आने के बाद भी न सुर सुधरे हैं, न असुर बदले हैं। प्रमाण हैं अवैध सहायता व संरक्षण दे कर पोषित किए जाने वाले अदने लोग व क्षुद्र देश। जिनके रक्त में कृतज्ञता के बजाय कृतघ्नता का भंडार है। दुर्भाग्य की बात है कि हमारा तंत्र सौ फीसदी षड्यंत्र की आशंका के बाद भी लोकेषणा के मोह से बच नहीं पा रहे हैं। नतीज़ा भस्मासुरों के रूप में सामने है। जो अब रक्तबीज बन चुके हैं। हमारी अपनी चूक से।
किसने कल्पना की थी कि यातना व यंत्रणा से मुक्त कराई गई दोगलों की एक जमात एक बार फिर अपने शोषक की तरफदारी करते हुए पोषक के विरुद्ध हो जाएगी। जी हां, बांग्लादेश की ही बात कर रहा हूँ मैं। जिसे आज़ादी से विकास तक की सौगात देकर हमारा देश अनचाही आपदा की कगार पर आ खड़ा हुआ है। यह अलग बात है कि हमारी सरकार मदद के बूते हर भिखारी को नातेदार बनाए रखने की जबरिया कोशिश अब भी कर रही है। जो बदलती हवा के साथ पाला बदलने के खेल में निपुण हो चुके हैं। हमारी सहिष्णुता व अति उदारवाद से भली-भांति परिचित होकर। ऐसे में लुटेरों को क्या कोसना, जब लुटना हमारी अपनी आदत बन चुका हो।
एक बार फिर वरदान देने का मौसम सामने है। कुदरत के कहर से कृतघ्नता संकट में है। कथित विदेश-नीति का तक़ाज़ा है। दरियादिली दिखाने और अपनी पीठ अपने हाथों थपथपाने व झूठी वाह-वाही पाने का मौका है। दे डालिए हज़ार पांच सौ करोड़। नेपाल, श्रीलंका, मलेशिया की तरह। ताकि कमज़ोर रीढ़ को दुरुस्त कर दानव फिर उठ खड़े हों। आपके ही ख़िलाफ़ ताल ठोकने और आपके ही बाल नोचने के लिए।
भगवान भला करे।।
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