## धोखा : नौ दोहे
धोखा: नौ दोहे
धोखा है ये जिन्दगी, मिली हमको उधार ।
झूठे तन कर घूमते, _ बने हम होशियार ।।
लालच बड़ी बला बुरी, _ है धोखे की यार ।
जबहिं लालच आप करें, धोखा मिले हज़ार ।।
धोखा के साथी हुए, छल-कपट और झूठ ।
लूट सके जो लूटिए, _ मिली हुई है छूट ।।
धोखा दिए जीत मिले, ना कर तू परहेज ।
काम जो यूँ बन जाए, _ ना हैरत-अंगेज ।।
यारों को धोखा दिए, __ कहलाए गद्दार ।
दुनिया में हमसे भला, कौन करेगा प्यार ।।
धोखे से दूर रहिए, _ दुनिया धोखेबाज ।
जग में रहके सीखिए, जीने का अन्दाज़ ।।
जग धोखा है मानिए, _ धोखे का बाजार ।
ठोंक-ठाक कर चलिए, रहिए फिर तैयार ।।
सारे हैं यों मतलबी, करें गर्ज़ से प्यार ।
धोखा खाके बिटिया, पड़ी हुई बीमार ।।
धोखे मिले हरेक से, किए जहाँ विश्वास ।
“जैहिंद” झूठे जग से, झूठ लगाए आस ।।
===============
दिनेश एल० “जैहिंद”
16. 02. 2018