धूप
1
होती अच्छी भोर की, कच्ची कच्ची धूप
तन को करती स्वस्थ है, और निखारे रूप
2
घिरती गम की रात जब,नहीं निकलती धूप
लगने लगती ज़िन्दगी, तम का गहरा कूप
3
सुबह सुबह की धूप में,करें रोज व्यायाम
बीमारी का ये करे , पूरा काम तमाम
4
धूप छाँव सी ज़िन्दगी,बदले अपने रंग
जैसे भी हालात हों, वैसे रहते ढंग
5
दुख की तीखी धूप में,जलते पहले पाँव
फिर जाकर मिलती हमें,सुख की गहरी छाँव
6
बादल खेलें सूर्य से,धूप-छाँव का खेल
और कभी जाते बरस,बूंदों से कर मेल
7
रहे नहीं इक म्यान में, जैसे दो तलवार
धूप-छाँव में भी छिड़ी,रहे यही तकरार
17-11-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद