धूप में जलना
मैंने सूरज से मिलने की शाम के सीने में तड़प देखी है
मैने झरने के सीने में पर्वत से बिछड़े की तड़प देखी है
मुझे ऐहसास है पत्तों की तड़प का जो डाली से बिछड़ जाते है
मैने रोटी से तरसती हुई आंखो की तड़प देखी है
मेरी राहों में तुमको जो सिर्फ शबनम दिखाई देती है
मेरे पांव ने कड़क धूप में जलने की तड़प देखी है
प्रज्ञा गोयल ©®