धूप निकलने लगी है
धूप निकलने लगी है
आओ आओ जी , धूप निकलने लगी है।
देखो देखो जी ,वृक्ष की पत्तियां हिलने लगी है।
मौसम की सुहाना बादल की मस्ताना,
प्रकृति ने अंगड़ाइयां लेने लगी है।
पक्षी की चहकना जी , मन को लुभाने लगी है।
मौसम की रंगत देखो जी, अब बदलने लगी है।
प्रकृति की नजारा मौसम का उजाला,
मनुष्यों को विटामिन डी देने लगी है।
धीरे-धीरे यहां का जी मौसम बदलने लगी है।
लोगों के जीवन में जी खुशियां आने लगी है।
मौसम अलबेला लोगो का प्यारा,
प्रेम की गोता में डूबने लगी है।
देखो जी सौर ऊर्जा से विद्युत उत्पन्न होने लगी है।
हवा की लहरों से पवन ऊर्जा की महत्ता बढ़ने लगी है।
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रचनाकार कवि डीजेन्द्र क़ुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभवना, बिलाईगढ़, बलौदाबाजार (छ. ग.)
8120587822