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13 Jun 2022 · 1 min read

‘धूप-छाँव का सफ़र’

जिन्दगी का सफर जिस राह से होकर गुजरता है,
कभी धूप तो कभी छाँव की सीढ़ी पर चढ़ता उतरता है।
तपता लोहार की धौंकनी में कभी ,
कभी चाँदनी की नौका में विचरता है।
स्वप्न घने बुन लेता ताने बाने के घेरों में,
फिर धागों में उसके उलझता सुलझता है।
अपनों के नेह में लिपट-लिपटकर, बार-बार गलता-पिघलता है,
तन छालों से छलनी बन जाता तो, रोता हुआ निकलता है।

-गोदाम्बरी नेगी

Language: Hindi
1 Like · 146 Views
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