“धूप”हाइकु
“धूप”
(1)धीमी बौछार
तन-मन भिगोए
धूप नहाए।
(2)जलती धरती
छिपती वन-वन
तपती धूप।
(3)हर झरोखा
खिड़की दरवाज़ा
झाँकती धूप।
(4)आँख-मिचौली
बादल संग खेले
चंचल धूप।
(5)आई भू पर
लहरों संग मस्ती
करती धूप।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी।(उ.प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर