धुआँ धुआँ इश्क़
धुआँ धुआँ सा इश्क़
सुलगता रहता है मुझमें
तुम सिगरेट की लत सी लग गई हो
जानता हूँ अंदर से खोखला कर रही हो मुझे
हर कश में मेरी साँसें कम कर रही हो
चाह कर भी नहीं दूर रह पाता हूँ
कहीं भीतर तक समा गई हो मुझमें
यंत्रवत खुद ही लबों से लगा लेता हूँ
तुम इस क़दर आदत सी शुमार हो मुझमें
तुम थोड़ा थोड़ा करके काफी पी गई हो मुझे
मेरे सामने मेज़ पर पड़ी देखती रहती हो मुझे
तुम सिगरेट की लत सी लग गई हो
धुआँ धुआँ सा इश्क़
सुलगता रहता है मुझमें…..
©कंचन”अद्वैता”