धीरे धीरे कविता नंबर-1
धीरे धीरे ही सही, तुम चलो तो सही, सूरज ना बन सको, मग़र दीया बन तुम जलो तो सही, अंधेरों को मिटाने को थोड़ी सी रोशनी ही काफी है, लेकिन रोशनी की तलाश मे , होसला कर तुम आगे बड़ों तो सही, धीरे धीरे ही सही, मगर तुम चलो तो सही।।
धीरे धीरे ही सही, तुम चलो तो सही, सूरज ना बन सको, मग़र दीया बन तुम जलो तो सही, अंधेरों को मिटाने को थोड़ी सी रोशनी ही काफी है, लेकिन रोशनी की तलाश मे , होसला कर तुम आगे बड़ों तो सही, धीरे धीरे ही सही, मगर तुम चलो तो सही।।