धीमा जहर
रोजमर्रा की जिंदगी में तमाम चीजें ऐसी हैं जिनका इस्तेमाल हम खाने-पीने मैं करते हैं। इन तमाम चीजों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। वजह साफ है तेजी से बढ़ रही आबादी। देखा जाए तो तमाम चीजों के उत्पादन में भी बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। इसके बावजूद आबादी के अनुपात में देखा जाए तो उत्पादन नाकाफी है।
दूध और उससे बनने वाली तमाम चीजों का इस्तेमाल हर घर में किया जाता है। दूध से बनने वाली सभी चीजें पौष्टिक है और अपना एक अलग असर रखती हैं। इसलिए दूध और इससे बनने वाली तमाम चीजों की मांग हमेशा बनी रहती है। एक सर्वे पर गौर किया जाए तो मालूम होता है कि हमारे देश में मांग के मुताबिक दूध का उत्पादन हो ही नहीं रहा है।
दूध का उत्पादन इतना भी नहीं है जिससे सिर्फ बच्चों के लिए दूध और आम घरेलू जरूरतें पूरी हो सकें। ऐसे में सवाल यह है बाजारों में मिलने वाला पनीर, दूध से बनने वाली तमाम मिठाइयां, रबड़ी, मावा, छैना, बंगाली मिठाई, गुलाब जामुन आदि की पूर्ति कहां से होती है? शायद हम जरूरत ही महसूस नहीं करते कि इन सवालों के जवाबों को तलाशा जाए।
हमारे यहां नकली दूध का कारोबार बड़े पैमाने पर चल रहा है। हालांकि इसका सबूत पेश करना बहुत आसान काम नहीं है। हां, शासन-प्रशासन के लिए कुछ मुश्किल भी नहीं। त्योहारों पर या किसी विशेष छापामारी अभियान के दौरान सामने आता है कि मिलावटी मिठाइयां और नकली दूध का कारोबार तो होता ही है।
आमतौर पर दूध बहुत ही संवेदनशील चीज है। ताजा दूध कुछ ही देर में खराब हो जाता है। इसके विपरीत बाजार में लव पैकिंग वाले दूध की एक्सपायरी 3 महीने आने लगी है। सवाल यह है कि कुछ ही देर में खराब हो जाने वाला ताजा दूध 3 महीने तक, वह भी फ्रिज से अलग, थैली में बंद रहने पर कैसे सही रह सकता है? मेरा विचार तो यही है कि वह दूध शुद्ध दूध न होकर रसायन युक्त कुछ और ही है। हैरत की बात यह है की तमाम जिम्मेदार लोग भी इस तरफ से आंखें मूंदे हुए बैठे हैं। नामचीन कंपनियां खुलेआम इस दूध को बाज़ार में सप्लाई कर रही हैं।
मुनाफाखोरों के दिल में इंसानियत इस हद तक मर चुकी है कि वह किसी की जिंदगी से खिलवाड़ करने से भी नहीं चूकते। दूध के रूप में यह मीठा जहर हमारी नस्लों के लिए कितना खतरनाक साबित होगा, शायद हम अंदाज भी न लगा पाएं। अभी भी समय है, हमें चेत जाना चाहिए। इस काले धंधे की खिलाफ पहले तो हमें खुद आगे आना होगा। इसके साथ शासन और प्रशासन को भी सच्ची भावना के साथ काम करना होगा।
© अरशद रसूल