धार्मिक जवानी
मनुष्य विचारवान है.
वह याद रख सकता है.
वह कल्पना कर सकता है,
वह हंस सकता है,
वह परिवार नियोजन कर सकता है.
वह मूलभूत आवश्यकताओं को जुटा सकता है
वह एक सामाजिक प्राणी है.
वह समूह में रहकर मनोरंजन के तरीक़े खोज लेता है,
मनुष्य ने ही प्रकृति में मौजूद मादक द्रव्य, औषधीय गुणों वाले पेड़ पौधे खोज कर आकस्मिक निधन को काबू किया,
मनुष्य ने धर्म के आचरण पर खोज की बनिस्पत अपना ध्यान मन के अध्ययन पर लगाया होता
धर्म बुढापे का शिकार होकर मर गया होता,
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धर्म जवान ही क्यों बना रहा,
मनुष्य चीजों को/तथ्यों को/आयोजन को
जानकर भी नहीं छोड पाया,
मनुष्य ने तरह तरह के मानसिक विकारों से पीडित व्यक्तियों के लिये शाखाएं खोल दी.
और नियम बना दिये गये.
यह आस्था का विषय है.
इस कोई सवालिया निशान नहीं खडे करेगा.
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यही वो समय था, कुछ चतुर शातिर बदमाश लोगों ने कथा,कहानियां, बुद्धिबल को कागजात में दर्ज कर दिया, नाम दिया आप्तवचन.
किसी धार्मिक, जातिवादी, वर्णव्यवस्था, शरीर के ढाँचे और वस्त्र-धारण से अलग थलग कर दिया,
और वर्चस्व की लडाई में मानवता को शर्मसार, तार-तार, आत्मघाती हमले करके मारते रहे.
कोई पूर्व तो कोई पश्चिम
तो कोई सूरज, तो कोई चंद्रमा
खगोलीय, भौगोलिक रूप से जीवन के बहुआयामी क्षेत्र को सीमित करने में लगे रहे.
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धर्म विक्षिप्तता पैदा करता है.
धर्म दिन प्रतिदिन जवान होते जा रहे हैं,
एक न एक दिन ये ही सृष्टि के विनाश का कारण बनेगा,
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस