धार्मिक अवधारणा और इंसानियत
इंसानी फितरत और धर्म
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*इंसानियत की पहचान होते ही तो
सब *तथाकथित *धर्म सब गिर जायेंगे.
इन पाखंडियों का काम ही है.
इंसानी फितरत को जानने से रोके रखना है.
धर्म कुछ शातिर चालाक लोगों का *जमावडा है.
आपको क्या लगता है ये लोग
इतनी आसानी से *इंसानियत को जानने देंगे.
कदापि नहीं.
हर विचारक/दार्शनिक को इन्होने
पहले जहर देकर मारा है फिर
उनके पूजन का विधान है.
आत्मग्लानि महसूस करते हैं.
*जीवन-दर्शन कब से धर्म होने लग गया.
नाम लेना आवश्यक नहीं है.
समझ रखने वाले समझ ही जाते है.
पानी का रासायनिक फॉर्मूला
कभी प्यास नहीं बुझा सकता.
ज्ञान-विज्ञान खोज प्रकृति/अस्तित्व/जीव-जगत
की क्रियाओं को जानकर उपयोग करना.
आचार-विचार, व्यवहार, व्यवस्थाओं को थोपा नहीं जा सकता.
उन्हें जानना ही प्राथमिकता है..भागना भी हल नहीं.
~डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस ~