धागा और जुबान
✒️?जीवन की पाठशाला ??️
जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की जिंदगी को गमले के पौधे की तरह मत बनाओ जो थोड़ी सी धूप लगने पर मुरझा जाये…जिंदगी को जंगल के पेड़ की तरह बनाओ जो हर परिस्तिथि में मस्ती से झूमता रहे !
जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की खुला हुआ लम्बा धागा और जरुरत से ज्यादा लम्बी जुबान अमूमन नई समस्याओं को जन्म देती है -ज्यादा खुला धागा अक्सर उलझ जाता है इसलिए जहाँ तक हो सके लपेट कर रखें और लम्बी जुबान उस बिगड़ैल घोड़े की तरह हो जाती है जो आसानी से काबू में नहीं आती ,संबंधों में तनाव -फूट पैदा करती है और आँखों की शर्म -लिहाज को भूला देती है …,
जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की जिंदगी में एक मुकाम ऐसा भी आता है जहाँ अधूरी ख्वाहिशों -सपनों के पूरा ना हो पाने की तड़प होती है -पल पल अपनों को अपने से दूर होते देखते रहने की अनकही -बेबस -बेजुबान बेबसी होती है ,ये कुछ ऐसा होता है जहाँ जंगल के शेर को पिंजरे में बंद कर दिया हो और आता जाता या एक बच्चा भी उसे कंकर मार कर चला जाए …,
आखिर में एक ही बात समझ आई की यहाँ अमूमन एक आम आदमी चैन की नींद नहीं सो पाता क्यूंकि हर बदलती करवट के साथ सुबह के होने की बेचैनी होती है -कल के दिन क्या होगा -कैसे होगा -होगा के नहीं होगा जैसे प्रश्नों की झड़ी दिमाग में होती है …!
बाक़ी कल , अपनी दुआओं में याद रखियेगा ?सावधान रहिये-सुरक्षित रहिये ,अपना और अपनों का ध्यान रखिये ,संकट अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क ? है जरुरी …!
?सुप्रभात?
स्वरचित एवं स्वमौलिक
“?विकास शर्मा’शिवाया ‘”?
जयपुर-राजस्थान