धर्म
कविता – धर्म
जब बढ़ता है इस धरती में पाप ,हिंसा और अत्याचार
तब कृष्ण लेते है धर्म के अभ्युत्थान के लिए अवतार
सीधे-साधे मनुष्यों पर जब-जब होता है दुर्व्यवहार
दुष्कर्मियों का करने विनाश,हर युग में आते पालनहार
जब-जब धर्म की होती हानि,अधर्म का होता जयकार
तब-तब कृष्ण जन्म लेकर, करते हैं दुष्टों का संहार
मिलेंगे यहीं बिछडेंगे यहीं, जिंदगी दो घड़ी का मेला है
जीवन के दो हैं साथी ,भाग्य और दूजा कर्म का खेला है
अर्जुन को हैं संदेश ये देते, द्वारिका के द्वारिकाधीश
रणभूमि में युद्ध कर रहे अर्जुन पर है उनका आशीष
कहते हैं तुम कर्म करो, मत देखो इसका परिणाम
धर्म के लिए लड़ते जाओ, तभी होगा अधर्म का नाश
आएंगे कई अपने,पराये,ये देख मत घबराना तुम
सत्य धर्म का साथ पकड़ कर आगे बढ़ते जाना तुम
धर्म युद्ध में हूँ साथ तुम्हारे, पीछे ना कदम हटाना तुम
धर्म की करने हमेशा रक्षा,अपना फर्ज निभाना तुम
ममता रानी
दुमका,झारखंड