धर्म सियासत जब मिले
विनोद सिल्ला के दोहे
धर्म सियासत जब मिले, होता खेल अजीब।
मार मुकाए आम – जन, नर-नार अरु गरीब।।
गाजा – पट्टी धर्म ने, कर दी लहूलुहान।
फिलीस्तीन – इजरायली, झेल रहे नुकसान।।
बहा खून अफगान का, गलियां हैं सुनसान।
तालिब होता छात्र है, बदनाम तालिबान।।
मानव को हैं बांटते, बन के धार्मिक लोग।
मानवता को खा रहा, धर्म नाम का रोग।।
खेल खिलाते धर्म जब, बनते पाकिस्तान।
इधर-उधर से उजड़ कर, झेला था नुकसान।।
हिन्दू – मुस्लिम कर रहे, वर्तमान के लोग।
भूल बड़ी हैं कर रहे, फैला असाध्य रोग।।
“सिल्ला” भी है कह रहा, चेत सको तो चेत।
अमन-चैन गर खो गया, मिले खांड में रेत।।
-विनोद सिल्ला