Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Mar 2024 · 2 min read

धर्म युद्ध

था छिड़ा युद्ध धर्म का एक, जिसमे दुश्मन थे भाई
एक षडयंत्री था वो, जिसने माया से आग लगाई

कुरुक्षेत्र की भूमि पे हुई रणभूमि तैयार
पक्ष विपक्ष दोनों संग थी सेना खड़ी अपार

खड़ा रथ पर अर्जुन था, उसके माथे पर तेज
खींचे जाते माधव थे, उसके रथ को बहु तेज़

सहसा देख विपक्ष मे भाई, अर्जुन का मन डोला
कांपे हाथ, छूटा धनुष, सजल नेत्र हो बोला

‘हे कृष्ण! युद्धस्थल कैसा है, जहाँ दुश्मन मेरे भाई
हैं खड़े समक्ष एक दूजे के हाय! कौन घड़ी ये आयी!

देख सामने इन सबको, ये दिल दर्द से रोता है
केशव! कैसा युद्ध है ये, जहां कुरु वंश नष्ट होता है

मैं प्राण अपनो के हरु कैसे?
हे भगवन! इन सबसे लडू कैसे?

भाई, पितामह, गुरु, मित्र हो इन सबका संघार
इससे अच्छा युद्ध रोक के, करलू क्षमा व्यवहार

छीन लू कुरु के लाडले? ये पाप मुझसे ना होगा
हे कृष्ण! क्षमा करे ये युद्ध मुझसे ना होगा!’

कहके बातें ये हताश, बैठा पांडू का लाल
केशव से देखा न गया, अर्जुन का ये हाल

सहसा उठे केशव, हुआ युद्ध वह स्थीर
चंचल नयन, शांत सी मुद्रा, पर वाणी गंभीर

‘हे पार्थ! उठो और युद्ध करो!
अपने पुरुषार्थ को सिद्ध करो!

क्या याद नहीं तुमको वोह क्षण, जब छिना मान सम्मान
भरी सभा में पासो के बल हुआ, नारी का अपमान

सामने खड़े विपक्षी, जिनको कहते हो तुम भाई
इन नीचो ने उस क्षण, शर्म हया सब बेच खायी!

क्षमा योग्य नहीं वह कर्म, जो इन दुष्टो ने किया है
और तुम पांडवो ने सारा जीवन, क्षमा ही तोह किया है

बाल्यावस्था से प्रतिदिन, करते आये हो इनको माफ़
एक बार न कभी माँगा, अपने लिए इंसाफ

इन दुष्टो से ना जाने, तुमने क्यों रखी आस
अरे! छल से तुम सबको दिया था, लाक्षागृह में फास!

तुमने सदैव सेवा करि, पूजे इनके पाँव
और इन दुष्टो ने ना दिए, तुमको पाँच गाँव

मत भूलो हे अर्जुन! क्षमा एक भूल करते है
जो करे पाप पे पाप, उनसे डटकर लड़ते है

और अब क्षण है साहस का, अब ना फेरो पग
अथवा कायर समझेगा, तुमको ये सारा जग

फल की चिंता न करो, न चिंता करो धरम की
करनी है तो चिंता करो अपने मान करम की

ये सब जो सामने खड़े, ये मेरे ही है हिस्से
पर पार्थ मैंने ना लिखे, इनके जीवन के किस्से

बनते मनुज सब मुझसे, पर अंत मै ना लेखता हूँ
बस कर्म देख के सबके, उनको उनका फल देता हूँ

पर न्याय धर्म का ज्ञान मुझे, उसके नाते कहता हूँ
उठो पार्थ! तुम युद्ध करो ज़िम्मेदारी मैं लेता हूँ!’

सुन भगवन के ये वचन, उठ खड़ा हुआ धनुरधारी
और स्थीर पड़ा था जो युद्ध, वह हुआ आगे जारी

Language: Hindi
92 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
हम तुमको अपने दिल में यूँ रखते हैं
हम तुमको अपने दिल में यूँ रखते हैं
Shweta Soni
घर हो तो ऐसा
घर हो तो ऐसा
Dr. Pradeep Kumar Sharma
2894.*पूर्णिका*
2894.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
तन्हाई को जश्न दे चुका,
तन्हाई को जश्न दे चुका,
goutam shaw
कहानी घर-घर की
कहानी घर-घर की
Brijpal Singh
ये 'लोग' हैं!
ये 'लोग' हैं!
Srishty Bansal
नारी के मन की पुकार
नारी के मन की पुकार
Anamika Tiwari 'annpurna '
मानवता का
मानवता का
Dr fauzia Naseem shad
माना कि मेरे इस कारवें के साथ कोई भीड़ नहीं है |
माना कि मेरे इस कारवें के साथ कोई भीड़ नहीं है |
Jitendra kumar
तिरंगा
तिरंगा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
यारों की महफ़िल सजे ज़माना हो गया,
यारों की महफ़िल सजे ज़माना हो गया,
Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}
सदैव मेहनत करके ही आगे बढ़ें,
सदैव मेहनत करके ही आगे बढ़ें,
Ajit Kumar "Karn"
लड़की अपने बॉयफ्रेंड से पूछती है
लड़की अपने बॉयफ्रेंड से पूछती है
Rituraj shivem verma
लगे रहो भक्ति में बाबा श्याम बुलाएंगे【Bhajan】
लगे रहो भक्ति में बाबा श्याम बुलाएंगे【Bhajan】
Khaimsingh Saini
विद्यार्थी जीवन
विद्यार्थी जीवन
Santosh kumar Miri
सज्ज अगर न आज होगा....
सज्ज अगर न आज होगा....
डॉ.सीमा अग्रवाल
रेशम की डोर राखी....
रेशम की डोर राखी....
राहुल रायकवार जज़्बाती
धारा ३७० हटाकर कश्मीर से ,
धारा ३७० हटाकर कश्मीर से ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
दिल की बात
दिल की बात
Ranjeet kumar patre
👌
👌
*प्रणय*
दुनिया की ज़िंदगी भी
दुनिया की ज़िंदगी भी
shabina. Naaz
तेरा ख्याल बार-बार आए
तेरा ख्याल बार-बार आए
Swara Kumari arya
अपने ख्वाबों से जो जंग हुई
अपने ख्वाबों से जो जंग हुई
VINOD CHAUHAN
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Mahendra Narayan
आज की हकीकत
आज की हकीकत
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
फकीर
फकीर
Dr. Kishan tandon kranti
में तेरी हर बात और जिद्द मान लूंगा अपने झगड़ते में
में तेरी हर बात और जिद्द मान लूंगा अपने झगड़ते में
पूर्वार्थ
अपनी राह
अपनी राह
Ankit Kumar Panchal
*चक्की चलती थी कभी, घर-घर में अविराम (कुंडलिया)*
*चक्की चलती थी कभी, घर-घर में अविराम (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
नारी : एक अतुल्य रचना....!
नारी : एक अतुल्य रचना....!
VEDANTA PATEL
Loading...