धर्मयुद्ध में देना होगा भारी मोल !
कटुओं का उत्पात सर्वत्र , खड़ा प्रलय दावाग्नि भयंकर ,
झंझावातों से घिरा राष्ट्र , आक्रांत भूधर-पर्वत-सागर !
शुक्र-शोणित-रक्त-मज्जा परिवेष्टित , विराट-ज्वलंत देह बनाकर ;
अरिमस्तक से पाट दे धरती , शत्रुदल में हा-हाकार उठाकर !
धर्मयुद्ध में आज तूम्हें पुनः देना होगा भारी मोल ,
वीरों की बलिदानी परंपरा का कौन कर सका है तोल !
हर हर महादेव
✍? आलोक पाण्डेय ‘विश्वबन्धु’