धरे रह गए
क़िस्मत के जब आसरे रह गए।
ख़्वाब सारे धरे के धरे रह गए।
सोचने में ही बीती जिंदगानी
मगर,
किस्से फिर सोच से परे रह गए।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
क़िस्मत के जब आसरे रह गए।
ख़्वाब सारे धरे के धरे रह गए।
सोचने में ही बीती जिंदगानी
मगर,
किस्से फिर सोच से परे रह गए।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी