धरती
शीर्षक — धरती
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(१)
सिर मुकुट है श्रीनगर , सेव फल की भंडार रे।
हाथ हमारी राजस्थान है,असम मणिपुर नाम रे।।
थार का मरुस्थल अपना है , चाय का बगान रे।
अपनी धरती अपना अम्बर, अपना हिन्दुस्तान रे।।
(२)
दिल वालों की दिल्ली है,भारत की ये शान रे।
महलों का कलकत्ता है,गुलाबी शहर जयपुर रे।।
धान का कटोरा छ.ग.,नदियों का शहर पंजाब रे।
अपनी धरती अपना अम्बर, अपना हिन्दुस्तान रे।।
(३)
कंगारू का आस्ट्रेलिया, सांपो का देश जापान रे।
हिन्द का मोती श्रीलंका,एशिया पेरिस थाईलैंड रे।।
पोप का शहर रोम है,विश्व की जन्नत फ्रांस रे।
अपनी धरती अपना अम्बर ,अपना हिन्दुस्तान रे।।
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रचनाकार कवि डीजेन्द्र क़ुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभवना,बिलाईगढ़,बलौदाबाजार (छ.ग.)
मो . 812058782