— धरती फटेगी जरूर —
शब्द जो चुना गया है , मानता हूँ अच्छा नहीं है, न ही किसी को अच्छा लगेगा, धरती फटेगी जरूर , परन्तु है एक दम सच – वक्त आ नहीं रहा है पास कि धरती फटे , वक्त को पास लाया जा रहा है, ताकि धरती जल्द फटे !
आप भी सोच रहे होंगे, कि ऐसा किस लिए लिखा जा रहा है, क्या कारण है, कि ऐसा लिख कर जताया जा रहा है कि धरती फटेगी ? धरती के साथ लगातार जो खिलवाड़ किये जा रहे है, वो उप्पर वाले को भी मजबूर कर रहा है , कि कुछ अनुचित किया जाए, पर यह जो लगातार तेजी से बढ़ती हुई गतिविधियां हैं , वो रूकने का नाम नहीं लेंगी, जब तक बहुत बड़ा विनाश नहीं हो जाता !
लोगों के आपसी सम्बन्ध पारिवारिक इतने खराब हो चुके है, कि हर नई जेनेरशन परिवार से अलग जाकर रहने के मूड में है, और उस का पूरा फायदा बिल्डर्स उठा रहे है, धरती का सीना चीर कर नित नए फ्लैट्स बना रहे है, जिस की ऊंचाई 25 , 30 फ़ीट से भी ज्यादा है, क्या यह फ्लैट बिना धरती को चीरे इतने उप्पर तक बन रहे है, सब जगह सर्वेक्षण कर के देख लो, आपको थोड़ी सी जमीन पर अनगिनत फ्लैट्स की बिल्डिंग्स नजर आने लगेंगी , पहले यह कभी मेट्रो सिटी में हुआ करती थी, आज यह लगभग हर उस जिले में नजर आ रही है , जहाँ पर उच्च कोटि के लोग विराजमान हैं, आखिर सब को आजादी चाहिए, उस आजादी का नया स्वरुप यही है, धरती को फाड़ो और नई नई इमारते बना डालो !!
इस के बाद हर शहर आज मैट्रो और रैपिड रेल चाहता है, हर शहर के लोग चाहते है, कि मैट्रो मेरे शहर में भी आये , मैं भी स्पीड के साथ सफर करूँ, मुझ को भी सारा शहर उस मैट्रो ट्रैन में से नजर आये, नए नए सपनों के भारत को सुचारू रूप देने के लिए सरकार भी उसी तरीके से लुभावने सपने सब के सामने लाकर साकार करने में जुटी है, पर कभी इस के दूरगामी बुरे वक्त के बारे में सोचा है, जिस जिस जगह पर धरती को फाड़ कर मैट्रो को चलने के लिए पिलर का निर्माण किया जा रहा है, उस से कितना खतरा है, भला ही सरकार हर चीज को मध्य नजर रख कर निर्माण करवा रही हो, जमीन की खुदाई करवा कर टनल बनाई जा रही है, जिस के बीच में से मैट्रो ट्रैन निकला करेगी, टेक्नोलोजी बेशक किसी भी ऊंचे स्तर पर पहुँच जाए, परन्तु धरती के साथ की जा रही छेड़छाड़ हमेशां नुक्सान ही करेगी, जमीन को खोद कर नये नये निर्माण बेचक किये जा नरहे हैं, पर जिस सतह से मिटटी को हटाया जा रहा है, किस बात की गारंटी है, कि वो मजबूती प्रदान करेगी , एक भूकंप का तेज झटका सारे किये गए काम को धराशाई करने में माहिर है !
धरती के भीतर हो रही हलचल पर किसी की नजर नहीं है, बेशक हम आज चाँद पर पहुँचने वाले हैं, धरती जितनी मजबूत बनी है, उस मजबूती को हम खुद खराब कर रहे हैं, पहाड़ों को काट काट कर रास्ते बना रहे है, हर आदमी पहाड़ की ऊँची चोटी पर पहुँचने के लिए व्याकुल है, हर इंसान पहाड़ो का सफर करना चाहता है, हर इंसान उन मंदिरों तक, हर उस पर्यटन स्थल तक जाने को परेशां है, पर सब से पहले आती है हमारी सुरक्षा , जिस के लिए हम खुद तैयार नहीं हैं, कितने ही सुगम रास्ते पहाड़ काट कर बना दिए गए, कितने ही पुल नदिओं के उप्पर बना दिए गए, कितने ही रोप वे बना दिए गए, पर कोई गारंटी नहीं है, कि हम सुरक्षित हैं, आज जैसा देखने सुनने को मिल रहा है, न जाने कितनी कारें , बसें , नदिओं में बह गयी देखते देखते सब कुछ खत्म हो गया ! धरती को जरुरत से ज्यादा खोदा जा रहा है, जरुरत से ज्यादा रास्ते बनाये जा रहे हैं, जल्द से जल्द काम समय में दूरी तय हो जाए, ऐसी ऐसी सड़कों का निर्माण किया जा रहा है ! हमारे शरीर के किसी हिस्से में अगर एक पिन या सुई भी चुभ जाए तो कितना दर्द महसूस होता है, तो क्या जिस धरती पर हम सब अपना जीवन बिता रहे है, उस के साथ किया जा रहा अत्याचार उस धरा को कैसे सेहन होगा ?
ऐसा वक्त अब नजदीक खुद इंसान ला रहा है, जिस से धरती को फटना ही पड़ेगा, न जाने कितने लोग इसी जल्दबाजी के चक्कर में परलोक सिधार गए, कितने लोग पानी में बह गए, बलि तो देनी ही पड़ेगी, उस में चाहे कोई भी लपेटा जाए, ज्यादा अत्याचार का नतीजा सब को पता है, उस के बाद भी अत्याचार पर अत्याचार किये जा रहे है, अनगिनत वृक्षों को काट दिआ गया, कितने वर्षों में जाकर एक वृक्ष बड़ा होता है, पर काटने में जरा सी देर नहीं लगती, यह सब धरती के साथ किये जा रहे कार्यों का ही तो परिणाम है, जिस को हम सब भुगत रहे है, अगर यही सिलसिला जल्द न थमा तो इस से भी ज्यादा विनाशकारी दिन जल्द देखने को मिलेंगे , लोगों की चाहत ही लोगों को बर्बाद करेगी, लोगों की जल्दबाजी, बेलगाम स्पीड़ , एक दूसरे को सड़क पर तेजी से वाहन भगाते हुए आगे निकलने की होड़ बर्बाद करेगी , लोगों का अहंकार बर्बाद करेगा, लोगों की काम समय में ज्यादा से ज्यादा धन कमा कर आगे निकलने की होड़ में मुख्य कारण बनेगी , काश ! अगर इंसान समझ सके तब न !
अजीत कुमार तलवार
मेरठ