धन से अधिक श्रम का दान
मेडिकल कॉलेज के 72 शय्या वाले पुरुष वार्ड की एक शय्या पर उसका पति पिछले कुछ दिनों से यकृत की बीमारी से उत्पन्न बेहोशी की हालत में भर्ती होकर जीवन मृत्यु से संघर्ष कर रहा था एक दिन मैंने देखा की लगभग 2 हफ्ते पूर्व उसी वार्ड में हुई किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात किसी अनुष्ठान के अनुपालन में उसके परिवार जन दान के स्वरूप में वस्त्र आदि गरीब मरीजों के बीच में वितरण कर रहे थे । अस्पताल प्रायः लोगों की निगाहों में किसी धर्म स्थल की भांति ही लोगों को दान कर पुण्य करने और कमाने के स्थल प्रतीत होते हैं । मैंने देखा कि उस मरीज के रिश्तेदार उस बेहोश पढ़े व्यक्ति की पत्नी को एक रंग बिरंगी साड़ी कुछ अन्य सामान के साथ उसे दान कर के संतुष्ट भाव से चले गए । जब मैं उसके पास राउंड पर जाता था तो मुझे वह साड़ी उसके पास डोली पर रखी दिखाई देती थी । दुर्भाग्यवश अगले दिन ही बीमारी से संघर्ष करते हुए उसका पति बीमारी से हार गया और उसकी मृत्यु हो गई । जब मैं राउंड पर पहुंचा तो वह अपने पति की के शव के साथ अपना अन्य सामान समेटकर जाने के लिए तैयार थी । एक थैले में से वहां पर चटक रंगों वाली लाल नीली पीली साड़ी उसके झोले से बाहर झांक रही थी ।
अक्सर दान करने वाले लोग किसी कर्मकांड के अंतर्गत अथवा किसी खुशी के अवसर पर अपनी अहमतुष्टि के लिए दान करते हैं । ऐसे में कभी कभी दानकर्ता , दान प्राप्तकर्ता के काल , स्थान , उसकी प्राथमिक आवश्यकताओं एवम मनःस्थिति का बिना कोई विचार किये अपने कर्मकांड अथवा अहमतुष्टि के लिये कुछ दान कर अपनी इतिश्री समझ लेते हैं ।
मान लीजिए यदि किसी दिन हम किसी को ₹10 का दान देना चाहें और वह उसे लेने से मना कर दे तो उसके इस व्यवहार से हमारे अहम को कितनी ठेस पहुंचे गी। हम यह सोचकर दान करते हैं कि हम किसी का भला कर रहे हैं पर इसके साथ ही हमारे द्वारा दिए गए दान को स्वीकार कर वह हमारे अहम की तुष्टि कर हमें कृतार्थ करता है और हमें भी सन्तुष्टि प्रदान करता है ।
मेरे शहर में एक अनोखा सर्व धर्म स्थल है जहां निकटवर्ती दायरे में मंदिर , मस्जिद – मज़ार और गुरुद्वारा स्थित हैं , वह भिक्षुओं की एक लंबी कतार हर समय देखी जा सकती है जो बिना किसी जाति , धर्म के भेदभाव के सबसे दान स्वीकार कर लेते हैं ।एक दिन उस जगह के पास से गुज़रते हुए मैंने देखा कि भिक्षुओं की कतार के एक सिरे पर कुछ दूर बैठी एक वृद्धा को एक सरदार जी उसके सामने एक पत्तल बिछाकर उसे भोजन करा रहे थे और उसके पास खड़े हो कर और लेने केलिए आग्रह कर रहे थे । मैं कुछ देर के लिए यह दृश्य देख कर वहां ठिठक कर रुक गया , उनके शरीर की विनीत मुद्रा , चेहरे की भावभंगिमा सेवाभाव में झुके नेत्र एक आनंद की अभिव्यक्ति कर रही थी ।
इसी प्रकार एक बार रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे एक सरदार जी को यात्रा के बीच मे ह्रदयाघात हो गया जिनको रेलवे पुलिस दल के द्वारा दल द्वारा मेरे इलाज में भर्ती कराया गया । वे अकेले यात्रा कर रहे थे उनके साथ कोई भी नहीं था । उन्हें मैंने मध्यरात्रि में भर्ती कर उपचार दे दिया , पर व्यक्तिगत रूप से उनकी सेवा करने के लिये उनके साथ कोई नहीं था । अगले दिन सुबह मैंने अपने एक मित्र सरदार जी से उनके बारे में ज़िक्र किया तो उन्होंने ने गुरुद्वारे में यह खबर खबर पहुंचा दी , बस फिर क्या मेरे देखते देखते अगले पूरे एक हफ्ते तक जब तक वो ICCU में भर्ती रहे हर समय एक दो लोग उनकी सेवा में लगे रहते थे । तथा कई घरों से परहेज वाला दूध दलिया , खिचड़ी आदि जैसा भोजन नियमित तौर पर आता रहा । मैं उनके समाज में स्थित इस बिना लालच नरनारायण की कर सेवा की भावना से बहुत प्रभावित एवम नतमस्तक हुआ ।
मुझे लगता है दान के द्वारा प्राप्त फल कोई जरूरी नहीं कि तत्काल मिले , इस जन्म में मिले या अगले जन्म में , मिले या ना मिले किसने देखा , पर मानव सेवा से प्राप्त आनंद की परमतुष्टी तत्क्षण इसी जन्म में प्राप्त होती है ।
इसी प्रकार रास्तों पर पड़े असहाय एवम लावारिस कुष्ठ रोगियों की मानव सेवा कर मदर टेरेसा संतत्व को प्राप्त हुईं , फल स्वरूप दान स्वतः ही उनके पीछे चलता रहा ।
मुझे लगता है सच है कि धन आदि भौतिक वस्तु के दान से बड़ा श्रम से की कर्म सेवा ( कार सेवा ) का दान है।