धन्यवाद् कोरोना! तुम आए अहसान तुम्हारा।
कोरोनावायरस कहने को तो एक वैश्विक महामारी है जिसने सम्पूर्ण विश्व को एक झटके में बता दिया कि हे नश्वर मनुष्य! अब भी वक्त है संभल जा और साथ ही साथ यह भी अहसास दिलवा दिया कि उस सर्वशक्तिमान के आगे यह क्षणिक जीवन मिथ्या है जिस पर हम गर्व करते हुए दिखावे का दंभ भरते हैं। वह पवित्र अदृश्य शक्ति चाहे तो सम्पूर्ण सृष्टि को एक पल में नेस्तोनाबूद कर सकती हैं।
खैर यह सब तो सभी जानते हैं और जिनको नहीं पता था उनको भी अहसास जरूर हो गया होगा कि शायद ही कोई ऐसा महानुभाव शेष होगा जिसको सत्य नजर ना आ रहा हो। पटाक्षेप करते हुए मुद्दे पर आते हैं।
कोविड-19 विषाणु वास्तव में एक ऐसा विषाणु है जो मानवता का शत्रु ना होकर मानव को मानव के आस्तित्व का अहसास दिलाने वाला प्राणी है वरना इंसान तो भूल ही गया था कि इस धरती पर इंसान भी रहते हैं। जीवन की भागदौड़, इधर उधर की आपाधापी में रिश्तों की अहमियत ही समाप्त हो गई थी। जिससे भी पूछो व्यस्त। व्यस्त है तब तो व्यस्त ही है अगर खाली भी बैठा है तब भी व्यस्त है। सुकून जैसे शब्द लगभग लुप्तप्राय होने लगे थे। मगर वाह रे कोरोना! तूने तो लोगों को जबरन ही सही कम से कम ये तो सिखाया कि घर पर तेरे अपने और भी हैं जिनके संग तू कभी हंसता था नोकझोक करता था चुहलबाज़ी की दस्ताने गढ़ा करता था, आज वो कितने अजनबी हो गए हैं।
व्यस्तता का परदा एक पल के लिए आंखों के सामने से हटाया तो अहसास हुआ कि उन अपनों के बालों में सफेदी और चेहरों पर झुर्रियां आ गई है जो कभी आकर्षक यौवन के धनी हुआ करते थे आज ज़िन्दगी से बोझिल होकर चिंताग्रस्त चेहरों के साथ कमरे के एक कोने में पड़े हुए तकिए के सिरहाने पर सर रखकर पैरों को समेटे मोबाइल की कृत्रिम दुनिया में अपने आस्तित्व की खोज यूट्यूब या सोशल मीडिया के सहारे ढूंढा करते हैं। दुनिया कितनी बदल गई है, सहसा यह अहसास मन को डरा गया कि कितना कम वक्त बचा है अपनों के लिए शायद पांच दस या पंद्रह साल कि हम मां बाप या भाई बहन से जता सकें कि हम आपसे कितना अगाध स्नेह करते हैं। अति तो तब हुई जब लगा कि कहीं कोई आकस्मिक दुर्घटना ये मौका भी ना छीन ले और सच कहूं तो यह विचार रूह में सिहरन पैदा करने वाला था। अभी भी समय है बोलकर या भावनाओ के मोती पिरोकर प्यार जताने का, और प्यार महसूस करने का, वरना ज़िन्दगी भर पश्चाताप के आंसू ही हाथ लगेंगे और हम स्वयं को निरीह एवम् असहाय महसूस करेंगे हम चाहकर भी उनसे माफी तक नहीं मांग पाएंगे। रोएंगे, गिड़गिड़ाएंगे हर जतन कर लेंगे पर उनसे कभी मिल नहीं पाएंगे।
इसलिए कोरोनावायरस जैसा मित्र मिलना दुर्लभ है जो खुद को बुरा बनाकर विश्व को डराकर लोगों को उनके अपनों से मिलाने उनको समझने उन्हें प्रेम करने का एक अंतिम मौक़ा दे रहा है कि कभी वो इस अहसास के साथ अपने आपको दोषी ना महसूस कर सकें कि काश! उनके अपने सिर्फ एक बार उनसे मिल जाएं और वो ताउम्र का प्यार उन पर उड़ेल सकें जो उन्होंने कभी उनके होने पर नहीं किया। उनको समय दो, प्यार दो, खट्टी मीठी बातें करो और हो सके तो भविष्य के लिए उनके फोटो संग्रहित करो, उनकी आवाज की ऑडियो वीडियो संग्रहित करो जो कभी उनके ना रहने पर उनके होने का अहसास दिलाएं और और आप कभी दोषी ना महसूस कर सकें कि वक्त रहते अपने उनको प्यार नहीं दिया। बाद के पश्चाताप से बेहतर है आज को सुधार जाए। इसलिए संभल जाओ अब शायद कोरोना जैसा मित्र इतनी जल्दी फिर ना मिले जो अपनों को अपनों से मिलाए। इसीलिए तो कहता हूं कि अहो भाग्य कोरोना! तुम हो आए। धन्यवाद तुम्हारा!
गौरव बाबा १०- मई- २०२०, १०:५३ पीएम