*धनवानों का काव्य – गुरु बनना आसान नहीं होता*
धनवानों का काव्य – गुरु बनना आसान नहीं होता
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काव्य लेखन में गुरु और शिष्य का संबंध प्राचीन काल से चला आ रहा है । गुरु अपने शिष्यों को कविता लिखना सिखाते थे।उनकी रचनाओं को शुद्ध करते थे । शिष्य बहुत श्रद्धा और भक्ति के साथ तथा अत्यंत आदर पूर्वक अपने गुरु के चरणों में बैठते थे । गुरु के नाम का स्मरण करते समय कानों पर उँगलियाँ रख लेते थे और उनका श्रद्धा भाव देखते ही बनता था । गुरुओं की प्रशंसा में शिष्यों ने बहुत कुछ लिखा है । लेकिन स्थिति तब पूरी तरह बदल जाती है , जब गुरु एक साधारण नागरिक होता है तथा शिष्य किसी रियासत का राजा , नवाब बादशाह अथवा अपने समय का अत्याधिक धनवान व्यक्ति होता है ।
कुछ ऐसा ही दिल्ली के अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर तथा उर्दू के प्रसिद्ध शायर इब्राहिम जौक के बीच भी हुआ । जौक साहब बहादुर शाह जफर की रचनाओं को शुद्ध करने का काम करते थे । उन्हें दरबार की तरफ से भरपूर वेतन मिलता था । वह समय-समय पर बहादुर शाह जफर की काव्य – रचना को शुद्ध किया करते थे । यह एक प्रकार से आदेश होता था । इसमें केवल अनुरोध या प्रार्थना का पुट नहीं हुआ करता था । बादशाह को मन में जो आया ,जब आया , वह उन्होंने लिखा और जौक साहब को उसे शुद्ध करके बहुत अच्छे स्तर पर लिखना पड़ता था । भला आदेश पर कोई कवि या शायर किसी की रचना को शुद्ध क्यों करता रहेगा ? और केवल शुद्ध करने का कार्य नहीं, कई बार तो यह बिल्कुल एक नई रचना लिखने जैसा ही कार्य हो जाता था । लेकिन राज कवि को सम्मान भी मिलता था समाज में और धन भी प्राप्त होता था । उसे प्रसिद्धि भी मिलती थी । जीवन में इन सब की भी आवश्यकता होती है । अतः इसे पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता।
कुछ इसी तरह रामपुर रियासत के नवाब यूसुफ अली खान और मिर्जा गालिब के बीच भी हुआ । नवाब साहब मिर्जा गालिब को अपना गुरु बनाना चाहते थे और इसमें सफल भी हुए। जीवन के अंतिम दशक में मिर्जा गालिब को रामपुर रियासत की ओर से ₹100 मासिक का वेतन मिलता रहा । तीन महीने मिर्जा गालिब रामपुर आकर रहे और नवाब साहब की काव्य रचनाओं को शुद्ध करने का काम करते रहे । फिर जब दिल्ली चले गए , उसके बाद भी नवाब साहब उन्हें अपनी रचनाओं को शुद्ध करने के लिए भेजते रहे।
आमतौर पर शिष्य अपने गुरु की प्रशंसा में काव्य रचनाएँ करते हैं । लेकिन जब गुरु एक साधारण नागरिक हो तथा शिष्य रियासत का नवाब हो, तब स्थिति बदल जाती है । मिर्जा गालिब ने नवाब यूसुफ अली खां की तारीफ में कसीदे लिखे । जब नवाब यूसुफ अली खान की मृत्यु के बाद नवाब कल्बे अली खान सत्तासीन हुए , तब वह भी क्योंकि शायर थे , इसलिए मिर्जा गालिब एक तरह से उनके भी गुरु हो गए । मिर्जा गालिब ने नवाब कल्बे अली खां की तारीफ में भी कसीदे लिखे और पुरस्कार मिला । ₹100 मासिक वेतन तो मिलता ही था । नवाब साहब के लेखन को शुद्ध करने का कार्य मिर्जा गालिब पर था। (उपरोक्त सूचना का स्रोत गूगल तथा फेसबुक है)
बड़े औद्योगिक घराने भी एक तरह से राजा और नवाब ही थे। । बड़े-बड़े कवि काव्य रचना में उनके गुरु तो जरूर बने, लेकिन धन की एक अपनी ही ठसक होती है । कुछ ऐसा ही प्रसिद्ध श्री हरि गीता के रचयिता , कवि तथा प्रवचनकर्ता पंडित दीनानाथ भार्गव दिनेश तथा प्रसिद्ध उद्योगपति रामकृष्ण डालमिया के बीच हुआ। दिनेश जी एक साहित्य सम्मेलन के लिए सेठ जी के पास चंदे के लिए गए और सेठ जी ने चंदा इस शर्त पर देना मंजूर किया कि उनकी धर्मपत्नी एक कविता कवि सम्मेलन में सुनाएँगी। काव्य रचना को दिनेश जी पहले से शुद्ध करके रखेंगे और इस तरह ₹500 का चंदा दे दिया जाएगा । बात 1940 की थी और ₹500 उन दिनों मुँह रखाते थे । घटना का वर्णन प्रसिद्ध साहित्यकार श्री विष्णु प्रभाकर ने दिनेश जी की प्रथम पुण्यतिथि पर प्रकाशित दिनेश स्मृति ग्रंथ पृष्ठ 17 पर अपने अनूठे अंदाज में इस प्रकार किया है:-
“याद आती है श्री रामकृष्ण डालमिया से भेंट की घटना । दिनेश जी वहाँ गुरु जी के रूप में जाने जाते थे । उन्होंने एक हजार की बात कर ली थी । पर ठीक वक्त पर सेठजी विद्रोह कर बैठे । यह जानकर कि श्री घनश्याम दास बिड़ला सम्मेलन में नहीं आ रहे , उन्होंने भी आने से इनकार कर दिया। आएँगे नहीं तो चंदा कैसे देंगे । मैं साक्षी हूँ, उस दृश्य का। दिनेश जी ने बड़े शांत भाव से उन्हें समझाया और अंततः यह फैसला हुआ कि सेठ जी तो नहीं जाएँगे , पर उनकी पत्नी श्रीमती सरस्वती देवी जाएँगी और पाँच सौ रुपये चंदा मिलेगा। तुरंत सरस्वती जी को बुलाकर सेठ जी ने आदेश दिया कि वह गुरुजी के सम्मेलन में चली जाएँ और कविता लिखकर उन्हीं से ठीक करा लें । मैं तब अनमना हो उठा था। चंदा लेने का भी मन नहीं था । पर अनुभवी दिनेश जी बोले” बड़े काम के लिए बहुत कुछ सहना पड़ता है।”
संसार के महान कवियों को धन के लिए धनवानों की कविताओं को शुद्ध करने के ऐसे ही न जाने कितने उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा होगा ।
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लेखक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451