धधकी ज्वाला में।
धधकी ज्वाला में जब लोहा गलता है
नये रूप में भाग्य तभी तो ढलता है,
जो अपने को पतझड़ तक पहुँचा न सका
वृक्ष कहाँ वह डाली – डाली फलता है।
धधकी ज्वाला में जब लोहा गलता है
नये रूप में भाग्य तभी तो ढलता है,
जो अपने को पतझड़ तक पहुँचा न सका
वृक्ष कहाँ वह डाली – डाली फलता है।