द्वैष दुर्भाव
व्यंग्य द्वैष दुर्भाव
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हमारे बड़े बुजुर्ग,संत महात्मा और
हमारे धर्म ग्रंथ हमेशा यही बताते सिखाते है
द्वैष दुर्भावना से दूर रहो समझाते हैं।
पर उन्हें शायद पता नहीं या
महज औपचारिकता निभाते हैं
कि अब कलयुग का जमाना है
नीति नियम, सद्भाव तो अब महज बहाना है
सच कहूं तो द्वैष, दुर्भाव, निंदा नफरत
और अनाचार, अत्याचार, व्यभिचार संग
पीठ में छूरा घोंपने का जमाना है
विश्वास की ओट में धोखा देना जिसे नहीं आया
उसके लिए आज धरती पर रहना बड़ा मुश्किल है
कोई कहीं भी रहें सत्यवादी बनकर
इज्जत सम्मान की क्या बात करुँ
आज कोई उसे भाव भी कहाँ देता?
संस्कार, सद्भाव, ईमानदारी और ईर्ष्या द्वैष की बातें
महज कहने सुनने में अच्छी लगती हैं,
आज जो इन्हें जीवन में उतार लेता है
उसकी सबसे ज्यादा दुर्गति होती है।
आज के समय में जो जितना ज्यादा
द्वैष, दुर्भाव, निंदा, नफरत के भाव रखता है
वही सबसे ज्यादा मजे में रहता है
और सबसे ज्यादा मान सम्मान पाता है,
उल्टे सीधे धन कमाकर अपनी तिजोरियां भरता हैं
कलयुग के इन सिद्धांतों का जो अनुसरण करता है
वही सबसे अच्छा कहलाता है
और वही पूजा भी जाता है।
सत्यवादी बनने का रोग जिसे हो गया
वो दर दर की ठोकरें खाता फिरता हैं
और अभावों में जीवन गुजारता है,
आज कलयुग में वो ही तमाशा बन जाता है।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश