***द्विपदी ***
(१)
जिन्दादिली के साथ जीना ही जिन्दगी है ,
वरना मुर्दों की कमी नहीं है इस शहर में ।
(२)
खोदकर पहाड़ निकाली थी एक चुहिया,
देखते ही देखते उसे भी बाज ले उड़ा ।
(३)
मन जब स्वार्थ के चंगुल में फँसता,जन-जन को पीड़ा देता है ,
परोपकार शिखर पर बैठ सदा वह, जन-जन की पीडा पीता है ।
******* सुरेशपाल वर्मा जसाला