द्रौपदी की व्यथा
पांचाल नरेश की कन्या थी
महाराज द्रुपद की तनया थी
थी याज्ञसेनी कृष्ण भी थी
द्रौपदी नहीं क्या धन्या थी…
था रचा पिता ने स्वयंवर
जब चाहा पुत्री हेतु वर
मछली की आँख को भेदे जो
ले जाए सुता वही धनुर्धर…
अर्जुन भी पहुँचे बाण सजा
यह खेल विधाता ने था रचा
पति रूप में अर्जुन प्राप्त हुए
आगम उंगली पर रहा नचा….