मन साधना
कहूँ किससे मैं वो किस्से, जो मेरे हिस्से आये हैं।
बनाया था जिन्हें अपना, वही निकले पराये हैं।
है रंगमंच ये दुनियां, यहाँ कोई नहीं अपना,
महज किरदार ही अपने यहाँ सबने निभाए हैं।
सुबह सूरज के आने पर गगन सिंदूरी होता है 30
सांझ ढलती है तब भी गगन सिंदूरी होता है 29
बड़े ज्ञानी समझते हैं ये बंधन काल का प्यारे 28
मिले झुर्री उसी तन में जो तन अंगूरी होता है 29
न दौलत काम आयेगी तेरा जब काल आएगा29
न गाड़ी न ये बंगला तेरे कुछ साथ जायेगा 28
किसे कहता है तू अपना ये धन और जागीरें 28
कर्म की गांठ के अतिरिक्त यहीं सब छूट जाएगा 29
न मेरा है न तेरा है , ये दुनियां एक मेला है 29
कहां उलझा तू मानव, ये जीवन एक खेला है 29
यहां आना यहां जाना यही है रीत एक न्यारी 29
ये दुख सुख मेरे साथी, कोरा मन का झमेला है 29