दौड़ते ही जा रहे सब हर तरफ
दौड़ते ही जा रहे सब हर तरफ
मंजिलों की सूचियां हैं अनगिनत
मिल गईं जो मंजिलें, ओझल हुईं
और कितनी शेष हैं मालुम नहीं
मन ने गर संतोष करना नहीं सीखा
जिंदगी भर यूं ही रहेगा दौड़ता
प्यास कैसे बुझ सकेगी पथिक की
घेर ले यदि मरुस्थल की मरीचिका