#दो_पंक्तियां-
#दो_पंक्तियां-
■ सत्ता को साहित्य का संकेत।
[प्रणय प्रभात]
आम जन व राष्ट्र के हित में सत्ता व शासक को जगाने का दायित्व साहित्य का रहा है। साहित्य ने अपनी इस भूमिका का निर्वाह सतत रूप से किया है। कभी खुल कर, तो कभी संकेतों में। दावानल बनने को बेताब चिंगारियों के प्रति तंत्र को आगाह कराने का प्रयास विविध प्रतीकों के माध्यम से अकिंचन ने भी किया है। इसी क्रम में आज प्रस्तुत हैं दो और पंक्तियां। हलजो छोटी लापरवाही के बड़े दुष्परिणाम की ओर इंगित ही नहीं करती, समाधान भी सुझाती है।
👍👍👍👍👍👍👍👍👍