मेरे दिल की गलियों में तुम छुप गये ऐसे ,
लोगों की फितरत का क्या कहें जनाब यहां तो,
दया के सागरः लोककवि रामचरन गुप्त +रमेशराज
सुनसान कब्रिस्तान को आकर जगाया आपने
बेटी
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
तिरे रूह को पाने की तश्नगी नहीं है मुझे,
चलो मान लिया तुम साथ इमरोज़ सा निभाओगे;
लोग आपके प्रसंसक है ये आपकी योग्यता है
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*सकल विश्व में अपनी भाषा, हिंदी की जयकार हो (गीत)*
पर्वतों और मैदानों में अहम होता है