दो सीमा है
दो सीमा है
अतीत लिए
समाने को प्रतीक्षा में
खड़ा है निरन्तर
या
स्थिर है अपनी स्थिति
नापते हुए तलाश रहा
अपने अंतिम अतीत रचने को
युग-युगान्तर ओर
अब कौन जाने !
संयम नहीं ठहरती
किसी पद् चिह्न को चलने को
खेवैया अब नहीं
नाविक है नहीं
नहीं नाव किनारे पर
फिर भी कौन खड़ा है!
अपनी उमंग उत्साह उत्सव लिए
किस मालाओं के गूंथन में
समा रहा या स्वं पिरोह रहा
कहानी रचने को
बीती दास्तां नहीं
कविता है।