दो शे’र
मुहब्बत की कहानी का क़िरदार बना दे मुझको ।
उस मह-जबीं का…….. दिलदार बना दे मुझको ।।
वो ख़ज़ाना है….. वफ़ा की ख़ुशबुओं का या रब ।
हसीं उस नेमत का…….. हक़दार बना दे मुझको ।।
© डॉ. वासिफ़ काज़ी , इंदौर
© काज़ी की क़लम
मुहब्बत की कहानी का क़िरदार बना दे मुझको ।
उस मह-जबीं का…….. दिलदार बना दे मुझको ।।
वो ख़ज़ाना है….. वफ़ा की ख़ुशबुओं का या रब ।
हसीं उस नेमत का…….. हक़दार बना दे मुझको ।।
© डॉ. वासिफ़ काज़ी , इंदौर
© काज़ी की क़लम