दो शे’र
मुहब्बत को ज़रूरी काम लिख रहा हूँ ।
हथेली पर मैं तिरा नाम लिख रहा हूँ ।।
किया था आग़ाज़ तिरे साथ में जिसका ।
उसी कहानी का मैं अंजाम लिख रहा हूँ ।।
©डॉ वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ी की क़लम
मुहब्बत को ज़रूरी काम लिख रहा हूँ ।
हथेली पर मैं तिरा नाम लिख रहा हूँ ।।
किया था आग़ाज़ तिरे साथ में जिसका ।
उसी कहानी का मैं अंजाम लिख रहा हूँ ।।
©डॉ वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ी की क़लम